नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी
॥ 1 ॥
निरङ्कार है ज्योति तुम्हारी।
तिहू लोक फैली उजियारी
॥ 2 ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला
॥ 3 ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे
॥ 4 ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना
॥ 5 ॥
अन्नपूर्णा हुयि जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला
॥ 6 ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिव शङ्कर प्यारी
॥ 7 ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावेम्।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावेम्
॥ 8 ॥
रूप सरस्वती का तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा
॥ 9 ॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भयि फाड के खम्बा
॥ 10 ॥
रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो
॥ 11 ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीम्।
श्री नारायण अङ्ग समाहीम्
॥ 12 ॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा
॥ 13 ॥
हिङ्गलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी
॥ 14 ॥
मातङ्गी धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुखदाता
॥ 15 ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी
॥ 16 ॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लाङ्गुर वीर चलत अगवानी
॥ 17 ॥
कर में खप्पर खडग विराजे।
जाको देख काल डर भाजे
॥ 18 ॥
तोहे कर में अस्त्र त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला
॥ 19 ॥
नगरकोटि में तुम्हीं विराजत।
तिहुँ लोक में डङ्का बाजत
॥ 20 ॥
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शङ्खन संहारे
॥ 21 ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी
॥ 22 ॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा
॥ 23 ॥
पडी भीढ सन्तन पर जब जब।
भयि सहाय मातु तुम तब तब
॥ 24 ॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब कहें अशोका
॥ 25 ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर नारी
॥ 26 ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावेम्।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवेम्
॥ 27 ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लायि।
जन्म मरण ते सौं छुट जायि
॥ 28 ॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न होयि बिन शक्ति तुम्हारी
॥ 29 ॥
शङ्कर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीत सब लीनो
॥ 30 ॥
निशिदिन ध्यान धरो शङ्कर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको
॥ 31 ॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गयी तब मन पछतायो
॥ 32 ॥
शरणागत हुयि कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी
॥ 33 ॥
भयि प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दयि शक्ति नहिं कीन विलम्बा
॥ 34 ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो
॥ 35 ॥
आशा तृष्णा निपट सतावेम्।
रिपु मूरख मॊहि अति दर पावैम्
॥ 36 ॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी
॥ 37 ॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला
॥ 38 ॥
जब लगि जियू दया फल पावू।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनावू
॥ 39 ॥
दुर्गा चालीसा जो गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै
॥ 40 ॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥