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महामृत्युंजय मंत्र से

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे

सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्धनान्

मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

महामृत्युंजय मंत्र का शब्दार्थ विश्लेषण

महामृत्युंजय मंत्र, जिसे त्र्यम्बकं मंत्र के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र मंत्रों में से एक है। इस मंत्र का शब्द-शब्दार्थ समझने से इसके गहरे अर्थ का पता चलता है:

ॐ: त्रिदेव और ब्रह्माण्ड का परम सत्य स्वरूप, सभी मंत्रों की शुरुआत.

त्र्यम्बकम् : “तीन नेत्रों वाला”, भगवान शिव का एक नाम, ज्ञान और सर्वदर्शन का प्रतीक.

यजामहे : “हम पूजा करते हैं”, श्रद्धापूर्वक भक्तिभाव से प्रार्थना.

सुगन्धिम् : “सुगंध से युक्त”, भगवान शिव की दिव्य प्रकृति का वर्णन, उनकी कृपा को सुगंध से भी सुखदायक बताया गया है.

पुष्टिवर्धनम् : “पोषण करने वाला”, जीवन और कल्याण का दाता, भगवान शिव को सृष्टि का आधार माना जाता है.

उर्वारुकमिव : “लौकी की तरह” (अपने डंठल से अलग होकर), जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने की चाह.

बन्धनान् : “बन्धनों से”, इस संसार के मोह-माया और कर्मों के बंधनों से मुक्ति की प्रार्थना.

मृत्योर्मुक्षीय : “मृत्यु से मुक्ति दिलाने वाला”, अमरत्व और मोक्ष की कामना.

मामृतात् : “अमरत्व से”, अनंत जीवन और आनंद की प्राप्ति की प्रार्थना.

संपूर्ण मंत्र का भावार्थ:

“हम सर्वज्ञानी और कृपालु भगवान शिव की स्तुति करते हैं। हे दिव्य और जीवनदायक शिव, कृपया हमें इस संसार के बंधनों और मृत्यु के भय से मुक्त कर अनंत जीवन का सुख प्रदान करें।”

महामृत्युंजय मंत्र के लाभ

mahamrityunjay mantra

1. अकाल मृत्यु का भय दूर होता है: इस मंत्र का नियमित जाप करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

2. स्वास्थ्य लाभ: महामृत्युंजय मंत्र का जाप शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। यह मंत्र तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करता है।

3. आध्यात्मिक उन्नति: इस मंत्र का जाप करने से एकाग्रता और ध्यान शक्ति बढ़ती है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति में सहायता मिलती है।

4. मन की शांति: महामृत्युंजय मंत्र का जाप मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है। यह मंत्र नकारात्मक विचारों को दूर करने में भी मदद करता है।

5. कर्मों का शुद्धिकरण: इस मंत्र का जाप कर्मों का शुद्धिकरण करने में मदद करता है। यह मंत्र नकारात्मक कर्मों के प्रभावों को कम करने में भी सहायता करता है।

6. इच्छाओं की पूर्ति: महामृत्युंजय मंत्र का जाप मनोबल और आत्मविश्वास को बढ़ाता है, जिससे इच्छाओं की पूर्ति में सहायता मिलती है।

7. ग्रहों की दशा में सुधार: इस मंत्र का जाप ग्रहों की दशा में सुधार करने में भी मदद करता है।

8. सुरक्षा और संरक्षण: महामृत्युंजय मंत्र का जाप सुरक्षा और संरक्षण प्रदान करता है। यह मंत्र नकारात्मक ऊर्जा और शक्तियों से बचाने में भी मदद करता है।

9. मृत्यु पर विजय: यह मंत्र मृत्यु पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक है। इसका जाप मृत्यु के भय को दूर करने और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है।

10. मोक्ष की प्राप्ति: महामृत्युंजय मंत्र का जाप मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह मंत्र आत्मा को जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करने में मदद करता है।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप कैसे करें:
– इस मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से करना सबसे अच्छा माना जाता है।
– मंत्र का जाप सूर्योदय या सूर्यास्त के समय करना शुभ माना जाता है।
– मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना चाहिए।
– मंत्र का जाप करते समय मन शांत और एकाग्र होना चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है जो अनेक लाभ प्रदान करता है। यह मंत्र जीवन के हर क्षेत्र में सफलता और खुशी प्राप्त करने में सहायता करता है।

मार्कण्डेय ऋषि: अल्पायु का श्राप और महामृत्युंजय मंत्र का वरदान

हिमालय की बर्फीली चोटियों के बीच बसे मृकंडु ऋषि और उनकी पत्नी मरूदवती संतान सुख की कामना रखते थे। उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और अंततः उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई। उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन तभी शिव ने कहा, “तुम्हारा पुत्र गुणवान और धर्मात्मा होगा, परंतु अल्पायु। वह केवल सोलह वर्ष जिएगा।”

यह सुनकर मृकंडु और मरूदवती दुखी हुए, पर शिव के वचनों को झुठला भी न सके। उन्होंने अपने बेटे का नाम मार्कण्डेय रखा। मार्कण्डेय बचपन से ही बुद्धिमान था और भगवान शिव का परम भक्त था। हर दिन वह शिवलिंग की पूजा करता और भगवान को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या करता था।

जैसे-जैसे मार्कण्डेय बड़ा होता गया, माता-पिता को उसके अल्पायु होने का भय सताने लगा। एक दिन उन्होंने उसे सच बता दिया कि वह केवल सोलह वर्ष ही जिएगा। यह सुनकर मार्कण्डेय विचलित नहीं हुआ, बल्कि उसने शिव की कृपा पाने के लिए कठोर तपस्या करने का निश्चय किया।

सावन महीने की शिवरात्रि को वह हिमालय के शांत वातावरण में जाकर एक शिवलिंग के नीचे गहन तपस्या में लीन हो गया। न तो वह खाता-पीता था, न ही सोता था। दिन-रात शिव का ध्यान करता रहता। उसकी अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर अंततः भगवान शिव प्रकट हुए।

मार्कण्डेय ने शिव को देखकर हाथ जोड़े और अमरत्व का वरदान मांगा। शिव जानते थे कि यमराज को ठुकराना उचित नहीं होगा, उन्होंने यमदूतों को भेज दिया। यमदूत शिवलिंग को पकड़ने आए, लेकिन मार्कण्डेय ने बताया कि वह शिवलिंग का ही हिस्सा है। उसे पकड़ने का मतलब शिवलिंग को ही पकड़ना होगा।

तभी शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए। यमदूतों को देखकर उनसे मार्कण्डेय को पकड़ने का कारण पूछा। यमदूतों ने शिव को बताया कि उन्हें सोलह वर्ष का हो चुका है, इसलिए उसे यमलोक ले जाना है।

शिव ने कहा, “मैंने इसे अमरत्व का वरदान दिया है। आप इसे कैसे ले जा सकते हैं?”

यमराज विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं और शिव भी त्रिदेवों में से एक हैं। इसलिए दोनों में कुछ विवाद नहीं हुआ। शिव ने कहा, “मैंने इसे अमरत्व का वरदान दिया है, तो वह शिवलिंग से बंधा हुआ है। तुम शिवलिंग ले जाना चाहते हो, तो ले जाओ।”

यह सुनकर यमराज समझ गए कि शिव मार्कण्डेय की रक्षा करना चाहते हैं। उन्होंने माना कि उनके वचनों को टाला नहीं जा सकता। आखिरकार यमराज वापस चले गए और मार्कण्डेय को मृत्यु का भय छू भी न सका।

इस तरह भगवान शिव की कृपा से मार्कण्डेय ऋषि अमर हो गए। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें महामृत्युंजय मंत्र का उपदेश दिया, जो मृत्यु को जीतने वाला मंत्र माना जाता है। आज भी यह मंत्र भक्तों को जीवन और मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने की आशा देता है।